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सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

यत्रांणा से मुक्त कर दो

यत्रांणा से मुक्त कर दो  
रिक्तता मुझको निगल ले  
इससे पहले उस दिशा में 
प्रस्थान कर दो  
व्योम सा व्यापक नहीं हूँ मैं  
ना समुद्र सी गहराई मुझ में  
मैं तो दीर्ध निश्वासों की कड़ी हूँ 
मुझ में अविकल प्राण भर दो  
यंत्राणा से मुक्त कर दो  
अक्षरों की तिक्तता से जल उठा हूँ  
छिन्न संकल्पों को समेटे 
कब से खड़ा हूं 
मौन का सम्मोहन 
हर कोशिका मैं व्याप्त् है 
तुम मन को स्पन्दन से भर दो  
मुझको यंत्राणा से मुक्त कर दो


10 टिप्‍पणियां:

  1. मैं तो दीर्ध निश्वासों की कड़ी हूँ
    मुझ में अविकल प्राण भर दो

    वाह...लाजवाब रचना...अद्भुत शब्द संयोजन...नमन है आपको...
    नीरज

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  2. मौन का सम्मोहन
    हर कोशिका मैं व्याप्त् है
    लाजवाब है एक-एक शब्दो का चयन. बिम्ब अनुपम

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  3. अक्षरों की तिक्तता से जल उठा हूँ
    छिन्न संकल्पों को समेटे
    कब से खड़ा हूं
    मौन का सम्मोहन
    हर कोशिका मैं व्याप्त् है
    तुम मन को स्पन्दन से भर दो
    मुझको यंत्राणा से मुक्त कर दो
    अद्भुत !

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  4. achhe shabd-sanyojan ke saath
    bahut achhee rachnaa
    badhaaee
    ---MUFLIS---

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  5. मुझको यंत्राणा से मुक्त कर दो
    badi chhatpatahat hai

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  6. यत्रांणा से मुक्त कर दो
    रिक्तता मुझको निगल ले
    इससे पहले उस दिशा में
    प्रस्थान कर दो

    बहुत ही सुंदर शब्दों का संयोजन है ....पर किस दिशा कि और इंगित कर रहे है विपिन जी ......?

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  7. आपको और आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  8. के बारे में महान पोस्ट "यत्रांणा से मुक्त कर दो"

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