और बदले तुम मेरे अन्धेरों पे
सुहानुभुती मैं दो शब्द बोलने लगे
अच्छा तो नहीं लगा
पर फिर भी मैंने कृतज्ञता प्रगट की
और मैं कर भी क्या सकता था
तुम्हें अपना समझ के कुछ मागाँ था
गैरों के आगे भला कैसे हाथ फैलाता
मेरा फैला हुआ हाथ लौटता
इससे पहले वहाँ अजनबियों की एक भीड़ लग गयी
सब अपने हिस्से का सूरज मुझे दे देना चाहते थे
पर मैंने अपना हाथ खींच लिया
उनसे किस मुहँ से कुछ लेता
आज तक तो अपना सब कुछ तुमको देता आया था
आज तक तो अपना सब कुछ तुमको देता आया था nice
जवाब देंहटाएंgair hi apne hote hain......jinhe sabkuch dete jate hain,we gair hote hain
जवाब देंहटाएं.....bahut hi achhi rachna
उनसे किस मुहँ से कुछ लेता
जवाब देंहटाएंआज तक तो अपना सब कुछ तुमको देता आया था ....
कभी कभी ऐसा समय आ जाता है ........... पर इंसान जाग जाता है ऐसे लम्हों में ....
मैंने तुमसे मुठ्ठी भर प्रकाश माँगा था
जवाब देंहटाएंऔर बदले तुम मेरे अन्धेरों पे
सुहानुभुती मैं दो शब्द बोलने लगे
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, आभार
इस बार तो मैं निःशब्द हो गया हूँ।
जवाब देंहटाएंइससे पहले वहाँ अजनबियों की एक भीड़ लग गयी
जवाब देंहटाएंसब अपने हिस्से का सूरज मुझे दे देना चाहते थे
पर मैंने अपना हाथ खींच लिया
उनसे किस मुहँ से कुछ लेता
आज तक तो अपना सब कुछ तुमको देता आया था
waah lajwaab panktiyaa ...!!
Bahut hi sunder bhav abhivyakti .....!!
.Choo gayi ....!!
तुम्हें अपना समझ के कुछ मागाँ था
जवाब देंहटाएंगैरों के आगे भला कैसे हाथ फैलाता
bahut sundar line
आपकी रचना भावपूर्ण और सुन्दर है। शायद मेरे पास शब्द कम हों किन्तु आप
जवाब देंहटाएंअपनी बात मेरे दिल तक पहुँचाने में सफ़ल रहे हैं।
बहुत सुंदर कविता । पर आखरी पंक्ति अगर यूं होती
जवाब देंहटाएंआज तक अपना सब कुछ तुमसे ही तो लेता आया था ।
apakee rachana bahut hi sundar hai.
जवाब देंहटाएंbhav purn aur sundar rachana jo dil ko chhu
gayi.
bhavvibhor kar dene wali kavita.
जवाब देंहटाएंउनसे किस मुहँ से कुछ लेता
जवाब देंहटाएंआज तक तो अपना सब कुछ तुमको देता आया था
जिनकी खुशियों के लिए अपनी खुशियों को जेहेन में तक न आने दिया उनके व्दार निराश होना बेहद दर्दनाक होता है
सुन्दर
अंतिम पंक्ति छू गयी दिल को!
जवाब देंहटाएंके बारे में महान पोस्ट "अपने हिस्से का सूरज"
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