कि वो अचानक पर्णविहिन हो
फूलों से लद लाते है
अपनी सार्थकता का अहसास
कितना भला लगता होगा उन्हें
जब हमारी आँखें
बरबस ही उन पर ठहर जाती हैं
ऐसा सिर्फ बहुत ऊँचें पर्वतों के साथ क्यों होता है
कि श्याम -धवल बादलों के झुँड़
उसकी देह से लिपट जाते है
अपनी ही विशालता का अहसास भी मधुर हो जाता है
जब छोटी सी बदली व्याकुल हो बरस जाती है
ऐसा सिर्फ मेरे साथ क्यों होता है
कि आँखें हमेशा नंगे वृक्षों को तलाश करती है
पहाड़ की उँचाइयों पर खड़े होकर
महासागर की गहराइयाँ याद आती है
बहुत थक जाने पर भी
कुछ और चलने का आग्रह
ठुकरा नहीं पाता
ऐसा सिर्फ मेरे साथ क्यों होता है
ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है
कि तुम वृक्ष ,पर्वत और मुझे
एक ही दृष्टि से देखती हो
मेरी जड़ता को अपनी चेतना से
सारोबार कर देना चाहती हो
ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है
:)
लाजवाब...अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंbahut sundar..
जवाब देंहटाएंबहुत भावमय प्रस्तुति है आभार्
जवाब देंहटाएंकि तुम वृक्ष ,पर्वत और मुझे
जवाब देंहटाएंएक ही दृष्टि से देखती हो
मेरी जड़ता को अपनी चेतना से
सारोबार कर देना चाहती हो
ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है
यह पंक्तियाँ खासतौर पर पसंद आयीं
...भाव्पूर्ण रचना..बधाई
bahut hi bhawpurn rachna
जवाब देंहटाएंEK PRAKRITI DHAANY DHAN SE LADI RACHANA.......SUNDAR ABHIWYAKTI
जवाब देंहटाएंगोयल साहब!
जवाब देंहटाएंबहुत सान्दर रचना है।
बधाई!
पूरी रचना भाव मय है आभार्
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