एक दिन सुबह सूरज नहीं उगा
हम बिस्तरों में कसमसाते हुए
उसके उगने का इन्तजार करने लगे
पर वह नहीं उगा ।
घीरे -घीरे हमारी बैचेनी बढ़ने लगी
अँधेरे आँखों को चुभने लगे
हम भाग कर सड़कों पर आ गये
हजारों की तादाद में लोग भाग रहे थे
चीख रहे थे
सूरज के उगने की प्रार्थना कर रहे थे
उस समय कुछ अन्धे
एक तरफ खडे़ मुस्करा रहे थे
उन्हें मालूम था
गलत राह पर चलते लोगों को सजा देने
सूरज भी गलत राह पर चला गया है
एक दिन आकाश में लगे तारों के पैबन्द
जगह -जगह से उखड़ गये
लाल -पीले मवादी खून की धाराऐं
सड़कों गलियों बाजारों में गिरने लगी
हमने नाक- भौं सिकोड़े
खिड़की दरवाजे बन्द कर लिये
इस समय कुछ इंसानी केकडे़
घरों से बाहर आकर खड़े मुस्करा रहे थे
क्यों कि उन्हें मालूम था
कि बिल्ली के भाग्य से
छीकें टूटते ही रहते हैं
एक दिन हमारे कद अचानक बढ़ने लगे
यहाँ तक कि हम अपने शहर की
सबसे ऊँची इमारत में
झाँक कर देख सकते थे
शायद यह हमारी बरसों पुरानी
झाँकने की आदत का परिणाम था
हम खुश थे झाँकने की सहूलियत पाकर
पर बहुत भीतर कोई एक दु:खी था
जिसे अपने में झाँकने की आदत थी