ज़िन्दगी गाँव है
तेज धूप का सफ़र
और थके पाँव है
केवट सी जिंदगी
रोजगार नावं है
कोयल की कुहू है
कौवे की कांव है
हार जीत का फेंसला
खेल है दांव है
जिन्दगी गाँव है
विपिन बिहारी गोयल
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Peace and Love
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"Cogito, ergo sum"
Chhotee bhaher kee shaandaar gazal.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-S, T }
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंbehad khubsoorat bhaw.........jindagi ek gaaw hai.....yahi to hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्रों ,मै आपका आभारी हूँ |
जवाब देंहटाएंbhut sundar rachana
जवाब देंहटाएंक्या खूब कही आपने
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
खूबसूरत रचना धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंघनी छाँव रोकती रही ..
जवाब देंहटाएंकड़ी धुप बुलाती रही ,
हम धूप में चल दिए ,
दरख्तोंके साये छोड़ दिए
रुकना मुमकिन न था ,
चलना पड़ ही गया ..
कौन ठहरा यहाँ ?
अपनी भी मजबूरी थी ..
इक गाँव बुलाता रहा,
एक सफ़र जारी रहा..
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क्या खूब कहा है आपने जिंदगी को...वाह
जवाब देंहटाएंशमा बहुत खूब कहा आपने
जवाब देंहटाएंअनिलजी धन्यवाद