सत से सत की ओर ,प्रकाश से प्रकाश की ओर ,
यात्रा -वैकल्पिक नहीं अनिवार्य
पुदगल कर्मबंधन अज्ञानजनित अनिवार्यता
कछुए की तरह मंजिल की तरफ़ या
हिरन की तरह माया के जल की तरफ़
दुर्गम -सुगम ,छांव -तपन ,मित्र -दुश्मन
समभावही है एकमात्र अवलंबन
खाते-पीते,रोते -हँसते ,सोते -जागते
बस उसका ही है सुमिरन एक अनहद नाद की अनुभूति को प्रस्तुत हो रहा हूँ
बस युहीं अपनी अपनी यात्रा पूरी कर रहा हूँ
bahut sundar rachana .sandesh deti hui .
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है आपने! बहुत ख़ूबसूरत रचना !
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