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शनिवार, 22 अगस्त 2009

यात्रा

अनंत से अनंत की ओर,पूर्णता से पूर्णता की ओर ,
सत से सत की ओर ,प्रकाश से प्रकाश की ओर ,
यात्रा -वैकल्पिक नहीं अनिवार्य
पुदगल कर्मबंधन अज्ञानजनित अनिवार्यता
कछुए की तरह मंजिल की तरफ़ या
हिरन की तरह माया के जल की तरफ़
दुर्गम -सुगम ,छांव -तपन ,मित्र -दुश्मन
समभावही है एकमात्र अवलंबन
खाते-पीते,रोते -हँसते ,सोते -जागते
बस उसका ही है सुमिरन
एक अनहद नाद की अनुभूति को प्रस्तुत हो रहा हूँ
बस युहीं अपनी अपनी यात्रा पूरी कर रहा हूँ

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