तरू ये भीगे - भीगे
लम्बी सड़कों का
दूर कहीं पर खो जाना
तूफानों का दो हाथों के मध्य गुजरना
कदमों का बरबस ही थमना , चलना
फिर थमना
अंगारों को मुठ्ठी में लेना और झुलसना
पीड़ा को स्वर न देना पर बिलखना
ताका करता है
आखों में बैठा
एक भीत कपोत
:)
अच्छी रचना. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंमौन क्लान्त विश्रान्त
जवाब देंहटाएंतरू ये भीगे - भीगे
लम्बी सड़कों का
दूर कहीं पर खो जाना
तूफानों का दो हाथों के मध्य गुजरना
कदमों का बरबस ही थमना , चलना
फिर थमना
अंगारों को मुठ्ठी में लेना और झुलसना
पीड़ा को स्वर न देना पर बिलखना
ताका करता है
आखों में बैठा
एक भीत कपोत
वाह .......!!
शानदार अभिव्यक्ति .....!!
बहुत सुन्दर रचना ....!!!
bahut achchi rachna !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंअंगारों को मुठ्ठी में लेना और झुलसना
जवाब देंहटाएंपीड़ा को स्वर न देना पर बिलखना
haan! peeda ka koi koi swar nah hota hai//////
bahut achci rachna
आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह !
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