बालू रेत पर
थके हुए पाँव का
अक्स भी ऐसा ही उभरता है
थका हुआ ,बोझिल सा
एक समग्र और लक्ष्य भेदी जीवन का
यही तो परिणाम है
एक थकान
वरना बालू की रेत पर
हवा के झोंके से गुजर जाते
और लहरों से अठखेलिया करते
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने अपनी रचना मे
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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Sundar abhivyakti...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंthanx.zindagi gaon hai ...acchi rachana ..aur aapki marham ki dukan bhi saj gai hai.
जवाब देंहटाएंबस युहीं हौसला बढाते रहिये
जवाब देंहटाएंखुदा उम्र दराज करे दर्देदिल की
मेरी दुकान में बरकत होती रहे
बहुत बढ़िया विपिन जी
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