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मंगलवार, 3 नवंबर 2009

बन्द दरवाजों का नहीं अफसोस

बन्द दरवाजों का नहीं अफसोस मुझे  
खोल दो खिड़कियाँ की दम धुटता है  
आह तुमने न सुनी तो न सही  
चीखँ पर तो अजनबी भी पलटता है  
राह उनको दिखाता है फिसलन कि  
और हँसता है जब कोई फिसलता है  
वो कह रहा था मुझसे कि बन दरियादिल  
आँख में अपनी उनकों, तिनका भी खटकता है




:)