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शनिवार, 29 अगस्त 2009

तुम मेरी क्या हो

मैं आज बेसाख्ता मैं अपने से पूँछ बैठा
कि तुम मेरी क्या हो
मेरा दिल का सकून
मेरी आखों की नींद
मेरी जुबाँ पर हर वक्त तेरा जिक्र
कानों में गूँजती तेरी हँसी
तेरे कदमों की आहट
तेरी किसी बात को याद करके मुस्करा जाना
और फिर निगाहों का दूर कहीं खो जाना
कभी तेरी जहीनयत् पर फख्र
कभी तेरे गुदाज जिस्म की याद
जुदाई के लम्हों का ये इतना लम्बा सफर
दिलो दिमाग पर एक धुन्ध सी छायी है
मेरे जेहन में तू सिर्फ तू समाई है
तूने मेरे दोनों जहाँ आबाद किये हैं
तेरी आखों में जलते उम्मीदों के चिरागों ने
मुझे मंजिल दिखायी है
मेरी हम सफर ही नहीं हम ख्याल भी है तू
मेरे जीने का सबब और मेरा निर्वाण है तू


:)

बुधवार, 26 अगस्त 2009

भीत कपोत


मौन क्लान्त विश्रान्त
तरू ये भीगे - भीगे
लम्बी सड़कों का
दूर कहीं पर खो जाना
तूफानों का दो हाथों के मध्य गुजरना
कदमों का बरबस ही थमना , चलना
फिर थमना
अंगारों को मुठ्ठी में लेना और झुलसना
पीड़ा को स्वर न देना पर बिलखना
ताका करता है
आखों में बैठा
एक भीत कपोत







:)

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

लौट के ना आ जाना



बहुत भीड़ है कहीं भी खो जाना
तुम कहीं लौट के ना आ जाना
मुसाफिर हूँ मुश्किल है कहीं पर रूक जाना
ढूंढोगे जहॉ छोड़ा था तो मुश्किल है पा जाना
तुम कहीं ......................
भूला के कल को मैने आज इतना से है जाना
मैं न याद रख पाऊगा
तुम्हारा मुस्कराना, सकुचाना, खिलखिलाना
तुम कहीं लौट के ना आ जाना
ये दुनिया तूम्हें लाख समझाए
पर कभी दिल की बातों में मत आना
तुम कहीं .............................
कुछ कदम ऐसे ही होते है
जो उठ कर एक बार वापिस नहीं पलटते
तुम मेरी गुजारिश को चूनौती समझना
तुम कहीं लौट के ना आ जाना

:)

रविवार, 23 अगस्त 2009

जाने कैसे लोग



जाने कैसे लोग यहाँ बसते हैं

जलता है जब घर किसीका ,हँसते हैं
समझाते हैं ज़माने की ऊँच नीच हमको
ख़ुद अपनी नियत पर जो नकाब रखतें हैं
खुश हैं अगर आप तो क्यों खुश हैं
रचते हैं कोई साजिश दिल आपका दुखाते हैं
छिपके करते हैं वार,भाग जाते हैं
जुबाँ शेर की जिगर गीद्डों का रखते हैं
जाने कैसे लोग यंहाँ बसते हैं
जलता है जब घर किसीका हँसते हैं



:)

शनिवार, 22 अगस्त 2009

यात्रा

अनंत से अनंत की ओर,पूर्णता से पूर्णता की ओर ,
सत से सत की ओर ,प्रकाश से प्रकाश की ओर ,
यात्रा -वैकल्पिक नहीं अनिवार्य
पुदगल कर्मबंधन अज्ञानजनित अनिवार्यता
कछुए की तरह मंजिल की तरफ़ या
हिरन की तरह माया के जल की तरफ़
दुर्गम -सुगम ,छांव -तपन ,मित्र -दुश्मन
समभावही है एकमात्र अवलंबन
खाते-पीते,रोते -हँसते ,सोते -जागते
बस उसका ही है सुमिरन
एक अनहद नाद की अनुभूति को प्रस्तुत हो रहा हूँ
बस युहीं अपनी अपनी यात्रा पूरी कर रहा हूँ

बुधवार, 19 अगस्त 2009

जिंदगी जब ठहराव होती है

जिंदगी जब ठहराव होती है
हर सुबह शाम की बात होती है
बहुत खामोश हो जाता है जब सारा आलम
तब खुद से खुद की बात होती है
युहीं खो जाती हो तुम जब पास हो कर भी
मुझे भी एक गुमशुदा की तलाश होती है
जब भी हो जाता हूँ उदास हँसते हँसते
यारों में तेरी बेवफाई की बात होती है
जब भी आता है सावन पे प्यार मुझको
दिल के हर कोने में बगावत की आवाज होती है
जब भी देखता हूँ फूलों को मुस्कुराते हुए
किताब में रखे एक सूखे हुए फूल की याद आती है
माना की इस जहाँ में है कोई नहीं अपना
मगर फिर भी
हर रोज किसी के आने की आस होती है

सोमवार, 17 अगस्त 2009

उफ़, ये क्या हो गया

उफ़ ये क्या हो गया
बातों बातों में इजहार हो गया
अब कैसे मिलाऊंगा मैं निगाहें
तेरा साया तक शर्मसार हो गया
आँख खुली तो तुम्हें आगोश में पाया
मेरा जीवन फूलों की कतार हो गया
तेरी चाहत बस युहीं बरकरार रहे
मुझे खुदा पे एतबार हो गया

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

थके हुए पाँव

बालू रेत पर
थके हुए पाँव का
अक्स भी ऐसा ही उभरता है
थका हुआ ,बोझिल सा
एक समग्र और लक्ष्य भेदी जीवन का
यही तो परिणाम है
एक थकान
वरना बालू की रेत पर
हवा के झोंके से गुजर जाते
और लहरों से अठखेलिया करते

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

मन बंजारा

अपनों की बस्ती थी फिर भी
मन बंजारा हो गया
जिस भी गाँव रुके हम
वो ही प्यारा हो गया
अपनों से दो मीठे बोल
सुनने को मन तरस गया
अपनी आँखों का हर सावन
गेरों के कंधो पर बरस गया
जब कभी दिखलाया है मुझसे
बेगानों ने अपनापन
अनायास चुभ गया है मुझको अपनों का बेगानापन
~विपिन बिहारी गोयल

बुधवार, 12 अगस्त 2009

ज़िन्दगी गाँव है

धूप है छांव है
ज़िन्दगी गाँव है
तेज धूप का सफ़र
और थके पाँव है
केवट सी जिंदगी
रोजगार नावं है
कोयल की कुहू है
कौवे की कांव है
हार जीत का फेंसला
खेल है दांव है
जिन्दगी गाँव है

विपिन बिहारी गोयल

--
Peace and Love

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

प्रणय का मूक निवेदन

मुझे तुम्हारे घर के सामने लगे

बैगनी रंग के फूलों वाले पेड से

प्यार हो गया है

एक दिन मैं उधर से

गुजर रहा था

अचानक हवा का

तेज झोंका आया

और ढेर सारे बैंगनी फूल

मेरे कदमों मैं बिछ गये

कह कर तो सभी करते हैं

पर प्रणय का ऐसा मूक निवेदन

कहीं देखा है तुमने ।

-विपिन बिहारी गोयल

सोमवार, 10 अगस्त 2009

जो जैसा चल रहा था चलने देते


जो जैसा चल रहा था चलने देते


गलतफहमियों का दाय्ररा बढ्ने देते


तो ही अच्छा था ।


दिल को बहलाने का बहाना तो था


सतरंगे सपनों का खजाना तो था ।


कुछ कह कर हमने कुछ खो दिया


कितनी सादगी से तुमने दिल तोड दिया


उम्र भर भटकने को तन्हां छॉड दिया ।


-विपिन बिहारी गोयल

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

तेज धूप का सफर

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तेज़ धूप का सफ़र पर्ल संस्थान जोधपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक से साभार

सर्वाधिकार सुरक्षित© लेखक-विपिन बिहारी गोयल


शनिवार, 1 अगस्त 2009

मन बंजारा

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तेज़ धूप का सफ़र पर्ल संस्थान जोधपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक से साभार

सर्वाधिकार सुरक्षित© लेखक-विपिन बिहारी गोयल