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शनिवार, 8 दिसंबर 2012

उस तरफ क्या है

उस तरफ क्या है, एक लम्बा मौन , गहरी चुप्पी , समुद्र सी गंभीरता,
 या भीषण हाहाकार, एक आर्तनाद , उत्तंग लहरें
 इस का अन्त कहाँ हैं, आल्हाद् की विपुलता में, चरम सुख में, परमानन्द में ,
 या तनावपूर्ण शून्यता गहन नीरव अंधकार और अपेक्षा में
 क्यों चल रहे हो उस राह पे , यह तो सोचो कि तुम क्या खो के क्या पा रहे हो
 यह श्वास और स्पन्दन , यह धुटन और क्रन्दन
सहज क्या है , स्वभाव क्या है अस्तित्व का अहं या पद वैभव का वहम्
 काल चक्र की निरन्तरता क्यों तुम्हें अभिभूत नही करती
 प्रारब्ध हो या संचित कर्म-फल आखिर भोक्ता तो तुम हो ........
 सर्ष्टा नहीं , सृजन तो हो ,
क्या होना अधिक निरापद है , सूक्ष्म या विशाल
 भय का उद्भव अज्ञान है या संस्कार ,
और अज्ञान भी क्या है सर्प -रज्जु भ्रम विकार ग्रस्त चित्त , माया का प्रति रोपण
 अर्थ लाभ आखिर लाभ है या हानि ।
शंकालु चित्त चित्तवृत्तियों का सम्मोहन , दुराभिलाषा ,
लोभ जो पाप का मूल है
और फिर परिणति क्या है दासता स्वयं अपनी ही इन्द्रियों की ........
 एक दौड़ है खोज की , जिसे खोजना है वो बाहर नही , भीतर है भूत , भविष्य और वर्तमान से परे -