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बुधवार, 12 अगस्त 2009

ज़िन्दगी गाँव है

धूप है छांव है
ज़िन्दगी गाँव है
तेज धूप का सफ़र
और थके पाँव है
केवट सी जिंदगी
रोजगार नावं है
कोयल की कुहू है
कौवे की कांव है
हार जीत का फेंसला
खेल है दांव है
जिन्दगी गाँव है

विपिन बिहारी गोयल

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Peace and Love

10 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद मित्रों ,मै आपका आभारी हूँ |

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  2. क्या खूब कही आपने
    बहुत खूब

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  3. खूबसूरत रचना धन्यवाद.

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  4. घनी छाँव रोकती रही ..
    कड़ी धुप बुलाती रही ,
    हम धूप में चल दिए ,
    दरख्तोंके साये छोड़ दिए
    रुकना मुमकिन न था ,
    चलना पड़ ही गया ..
    कौन ठहरा यहाँ ?
    अपनी भी मजबूरी थी ..
    इक गाँव बुलाता रहा,
    एक सफ़र जारी रहा..

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  5. क्या खूब कहा है आपने जिंदगी को...वाह

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  6. शमा बहुत खूब कहा आपने
    अनिलजी धन्यवाद

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