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शनिवार, 12 सितंबर 2009

ऐसा सिर्फ मेरे साथ क्यों होता है

ऐसा सिर्फ वृक्षों के साथ क्यों होता है  
कि वो अचानक पर्णविहिन हो 
फूलों से लद लाते है  
अपनी सार्थकता का अहसास 
कितना भला लगता होगा उन्हें 
जब हमारी आँखें 
बरबस ही उन पर ठहर जाती हैं 
ऐसा सिर्फ बहुत ऊँचें पर्वतों के साथ क्यों होता है  
कि श्याम -धवल बादलों के झुँड़ 
उसकी देह से लिपट जाते है  
अपनी ही विशालता का अहसास भी मधुर हो जाता है  
जब छोटी सी बदली व्याकुल हो बरस जाती है 
ऐसा सिर्फ मेरे साथ क्यों होता है  
कि आँखें हमेशा नंगे वृक्षों को तलाश करती है 
पहाड़ की उँचाइयों पर खड़े होकर 
महासागर की गहराइयाँ याद आती है 
बहुत थक जाने पर भी 
कुछ और चलने का आग्रह 
ठुकरा नहीं पाता  
ऐसा सिर्फ मेरे साथ क्यों होता है 
ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है  
कि तुम वृक्ष ,पर्वत और मुझे 
एक ही दृष्टि से देखती हो  
मेरी जड़ता को अपनी चेतना से 
सारोबार कर देना चाहती हो  
ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है








:)

8 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब...अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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  2. कि तुम वृक्ष ,पर्वत और मुझे
    एक ही दृष्टि से देखती हो
    मेरी जड़ता को अपनी चेतना से
    सारोबार कर देना चाहती हो
    ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ क्यों होता है

    यह पंक्तियाँ खासतौर पर पसंद आयीं
    ...भाव्पूर्ण रचना..बधाई

    जवाब देंहटाएं

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