खोल दो खिड़कियाँ की दम धुटता है
आह तुमने न सुनी तो न सही
चीखँ पर तो अजनबी भी पलटता है
राह उनको दिखाता है फिसलन कि
और हँसता है जब कोई फिसलता है
वो कह रहा था मुझसे कि बन दरियादिल
आँख में अपनी उनकों, तिनका भी खटकता है
:)
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मुझे तुम्हारे घर के सामने लगे
बैगनी रंग के फूलों वाले पेड से
प्यार हो गया है
एक दिन मैं उधर से
गुजर रहा था
अचानक हवा का
तेज झोंका आया
और ढेर सारे बैंगनी फूल
मेरे कदमों मैं बिछ गये
कह कर तो सभी करते हैं
पर प्रणय का ऐसा मूक निवेदन
कहीं देखा है तुमने ।
-विपिन बिहारी गोयल
जो जैसा चल रहा था चलने देते
गलतफहमियों का दाय्ररा बढ्ने देते
तो ही अच्छा था ।
दिल को बहलाने का बहाना तो था
सतरंगे सपनों का खजाना तो था ।
कुछ कह कर हमने कुछ खो दिया
कितनी सादगी से तुमने दिल तोड दिया
उम्र भर भटकने को तन्हां छॉड दिया ।
-विपिन बिहारी गोयल
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सर्वाधिकार सुरक्षित© लेखक-विपिन बिहारी गोयल
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सर्वाधिकार सुरक्षित© लेखक-विपिन बिहारी गोयल
"Cogito, ergo sum"